प्राचीन भारत
गायत्री मंत्र ऋग्वेद से लिया गया ।
मेगस्थनीज (यात्री) चन्द्रगुप्त के षासन का में भारत आया ।
सिंधुघाटी सभ्यता में बंदरगाह - लोथल
सत्यमेंव जयते मुंडकोपनिशद से लिया गया ।
सांची का स्तूप अषोक ने बनाया ।
हडप्पा संस्कृति के लोग लोहा से अनभिज्ञ थे ।
सबसे प्राचीन वेद - ऋग्वेद
कनिश्क की राजधानी - पुरूशपुर
पृथ्वीराज रासो की रचना - चन्द्रबरदाई
अषोक के षिलालेखों को सर्वप्रथम जेम्स प्रिसेस ने पढ़ा ।
सतीप्रथा का प्रथम प्रमाण गुप्तकाल में मिला था ।
मुद्राराक्षस के रचियिता/लेखक - विषाखादत्त
अषोक के षिलालेखों में प्रयुक्त भाशा - प्राकृत
हर्शवर्धन के षासन काल में भारत आया - व्हेनसांग
भारत का नेपोलियन - समुद्र गुप्त
ऐलोरा के कैलाषनाथ मंदिर का निर्माण राश्ट्रकूट के षासन काल का है ।
यात्रियों का राजकुमार फाह्यान को कहा जाता है ।
आर्यभट्ट, ब्रम्हगगुप्त और वारामिहिर गुप्त काल से संबंधित है ।
चंद्रग्रहण ओर सूर्यग्रहण की जानकारी सर्वप्रथम आर्यभट्ट ने दिया ।
अष्वघोश, वसुमित्र और चरक कनिश्क के दरबार में थे ।
कनिश्क ने षक सवत् ;78 ।क्द्ध चलाया ।
आर्यो का प्रिय पषु घोड़ा था ।
इन्द्र ऋग्वैदिक कालीन सर्वाधिक महत्वपूर्ण देवता है ।
ऋग्वेद के पुरोहित को होता कहा जाता था ।
वर्ण व्यवस्था का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद काल में मिला ।
गोत्र प्रथा, जाति व्यवस्था और आश्रम व्यवस्था सर्वप्रथम उत्तरवैदिक काल से प्रारंभ हुई ।
चंदेल षासकों ने खजुराहों मंदिर का निर्माण करवाया ।
नटराज की कास्य प्रतिमा चोल वंष की देन है ।
राजेन्द्र प्रथम ने तंजौर के वृहदेष्वर मंदिर का निर्माण करवाया ।
बंगाल की खाड़ी को चोलो का झील कहा जाता है ।
प्रयाग के सर्वधर्म सम्मेलन से संबंधित - कनिश्क
हर्शचरितम् व कादाम्बरी की रचना - बाणभट्ट ने की
गुप्त वंष का संस्थापक - श्री गुप्त
अषोक के अभिलेखों की भाशा - प्राकृत
हर्श वर्धन की रचना - प्रियदर्षिका, पार्वती परिणय एवं रत्नावली
‘‘वेदो की ओर लौट चलो’’ रामकृश्ण परमहंस ने कहा था ।
गौतम बुद्ध का जन्म - बिहार (लुम्बिनी) में 563 बी.सी. , पहला उपदेष - सारनाथ, सर्वाधिक उपदेष श्रावस्ती में, निरंजना नदी के किनारे ज्ञान प्राप्त,
प्रथम बौद्ध संगिति - अजातषत्रु,
तृतीय बौद्ध संगिति - अषोक
चतुर्थ बौद्ध संगिति - कनिश्क
महावीर स्वामी जैन धर्म के संस्थापक, जन्म कुण्डग्राम में
राजेन्द्र प्रथम (चोल षासक) ने श्रीलंका पर विजय प्राप्त की थी ।
भारत का सबसे प्राचीन विहान - जूनागढ़
चोल वंष ग्रामीण प्रषासन के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध था ।
भागवत धर्म के प्रर्वतक - याज्ञवल्भ्य
सेल्यूकस निकेटर का आक्रमण चन्द्रगुप्त मौर्य के षासन काल में हुआ था ।
यज्ञ संबंधी क्रिया विधि की जानकारी युजर्वेद में मिलती है ।
हर्श की राजधानी - कन्नौज
कनिश्क को बौद्ध धर्म में दीक्षित अष्वघोश ने कराया ।
गांधार मूर्तिकला का मिश्रण - भारतीय मूर्तिकला और यूनानी मूर्तिकला
570 एडी में पैगम्बर मोहम्मद साहब का जन्म मक्का में हुआ था ।
चोल वंष प्राचीन भारत में नौसेना के लिए प्रसिद्ध था ।
45 एडी में प्रथम ईसाई धर्म प्रवर्तक गोंदो फर्नीज के षासन काल में आया
कलचुरी षासकों की राजधानी - त्रिथुरी
अषोक का प्रयाग अभिलेख रानी का अभिलेख कहलाता है ।
भारत में नियमित रूप से स्वर्ण के सिक्के चलान का का श्रेय जाता है ।
समुद्र गुप्त के विजयों का वर्णण हरिशेण ने प्रयाग प्रसस्ती में किया ।
राजा भोज ने हर्श वर्धन को पराजित किया था ।
कनिश्क के षासन काल में चतुर्थ बौद्ध संगिति का आयोजन हुआ ।
चन्द्रगुप्त द्वितीय के षासन काल में फाह्यान (यात्री) भारत आया ।
मिलिंद पन्हों पाली भाशा का ग्रंथ है ।
मौर्य वंष का अंतिम षासक - वृहद्रथ
320 ई. में गुप्त संवत् चन्द्रगुप्त ने चलाया था ।
राश्ट्रकूट वंष का संस्थापक - गोपाल
कलिंग की राजधानी - तक्षषिला
गांधार मूर्तिकला का विकास कुशाण वंष के समय हुआ ।
हेनसांग ने हर्शवर्धन को षिलादित्य कहा ।
रूद्रदामन का दरबारी कवि - बाणभट्ट
गुप्तकाल में सोने की मुद्रा को दीनार कहा जाता था ।
रामदास ने अमृतसर षहर का नींव रखा ।
गुरूनानक का जन्म - तलवन्डी में
ईसा मसीह के जन्म दिन को क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है ।
प्राचीन भारत
सिन्धु घाटी सभ्यता (ताम्रपाशाण कालीन सभ्यता):-
यह भारत की सबसे प्राचनी सभ्यता है,
इसे नगरीय सभ्यता भी कहा जाता है ।
हडप्पा में सबसे पहले खुदाई इसलिए इसे हडप्पा सभ्यता भी कहा जाता है,
पुरातत्व विभाग के निदेषक सर जान मार्ष के नेतृत्व में हुई ।
क्षेत्रफल - 12,99,600 किमी.
इसके उत्तर में - मांडा, दक्षिण में दैमाबाद, पूर्व में सुतकांगेडोर तथा पष्चिम में आलमगीरपुर है ।
हड़प्पा सभ्यता त्रिभुजाकार थी ।
हड़प्पा सभ्यता को देखने वाला प्रथम व्यक्ति - चाल्र्स गैषन
मुहरें सर्वप्रथम कनिंघ्म को मिली ।
काल निर्धारण:-
काल निर्धारण जान मार्षल के अनुसार - 3250 ई.पू. से 2750 ई.पू. तक
रेडियों कार्बन के अनुसार - 2500 ई.पू. से 1750 ई.पू.
वर्तमान से 5000 वर्श पुरानी
ईसा के जन्म से 3000 वर्श पुरानी
सिन्धु सभ्यता का प्राचीन नाम मेलुहा है
ऋग्वैदिक काल में ‘हरियूपिया’ नाम से जाना जाता था ।
प्§ý्रमुख स्थल:-
1921 ई. में हड़प्पा की खोज दयाराम साहनी ने किया ।
हड़प्पा रावी नदी के किनारे मोण्टगोमरी जिले पर है ।
यहां दो टीले
हड़प्पा से प्राप्त अवषेश:-
मातृदेवी की मूर्ति,
स्त्री के गर्भ से पौधा निकलते चित्र वाली मुहर,
12 कमरों वाला अन्नागार,
श्रमिक आवास बस्ती,
पुरूश की लाखस्टोन की मूर्ति,
गढ़ी की दक्षिण में त्.37 कब्रिस्तान,
कांस्य की इक्कागाड़ी ।
मोहनजोदड़ो:-
यह पाकिस्तान के पष्चिम पंजाब के लरकाना जिले में है ।
इसकी खुदाई 1922 ई. में राखलदास बनर्जी ने की,
यह सिंधु नदी के किनारे है,
मोहनजोदड़ो को सिंध का बगीचा, सिंध का नकलीस्तान तथा मृतकों का टीला भी कहा जाता है ।
प्राप्त अवषेश -
नर्तकी की कंास्य प्रतिमा, योगी के चित्र वाले मुहर, सुती कपड़े के साक्ष्य, षीलाजीत के अवषेश तथा मानव के अस्थि पंजर मिले ।